झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के चाईबासा सरकारी अस्पताल से हाल ही में एक बेहद दर्दनाक और चौंकाने वाली घटना सामने आई है. यहां थैलेसीमिया से पीड़ित मासूम बच्चों को एचआईवी (HIV) संक्रमित खून चढ़ा दिया गया. इस लापरवाही ने न सिर्फ बच्चों और उनके परिवारों की जिंदगी को हिला दिया है, बल्कि पूरे राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
जानकारी के मुताबिक, 13 सितंबर को सात थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों को संक्रमित खून चढ़ाया गया था. जब 18 अक्टूबर को जांच रिपोर्ट आई, तो सभी के एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने से स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया. जांच में बाद में 6 और बच्चों के भी पॉजिटिव होने की पुष्टि हुई. इस हादसे के बाद लोगों में गुस्सा और डर दोनों है, वहीं अब लोग थैलेसीमिया जैसी बीमारी के बारे में ज्यादा जानने की कोशिश कर रहे हैं और इस बीमारी से बचाव के तरीके ढूंढ रहे हैं. ऐसे में आइए आज हम आपको बताते हैं कि आखिर थैलेसीमिया क्या होता है और इससे बचाव कैसे किया जा सकता है.
क्या है थैलेसीमिया?
थैलेसीमिया एक जेनेटिक यानी माता-पिता से बच्चों में आने वाली ब्लड संबंधी बीमारी है. इस बीमारी में शरीर हीमोग्लोबिन प्रोटीन को सही और पूरी मात्रा में नहीं बना पाता है. हीमोग्लोबिन रेड ब्लड सेल्स में पाया जाता है, जो हमारे शरीर के हर हिस्से तक ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करता है. जब हीमोग्लोबिन पर्याप्त नहीं बनता तो शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिससे थकान, कमजोरी और एनीमिया जैसी स्थिति पैदा हो जाती है.
थैलेसीमिया के मरीजों को अक्सर बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत पड़ती है, क्योंकि उनका शरीर खुद से पूरी तरह रेड ब्लड सेल्स नहीं बना पाता. यही कारण है कि थैलेसीमिया पीड़ितों को समय-समय पर ब्लड ट्रांसफ्यूजन कराना पड़ता है. हालांकि, अगर इस प्रक्रिया में लापरवाही हो जाए, जैसा कि झारखंड में हुआ तो संक्रमित खून चढ़ने का खतरा भी बढ़ जाता है.
थैलेसीमिया से बचाव के तरीके और इलाज
थैलेसीमिया को होने से रोकना संभव नहीं है क्योंकि यह जेनेटिक बीमारी है, लेकिन समय पर जांच से इससे बचाव किया जा सकता है.
1. जेनेटिक काउंसलिंग – अगर किसी परिवार में पहले से थैलेसीमिया के मरीज हैं तो शादी से पहले या बच्चे की योजना बनाने से पहले जेनेटिक काउंसलिंग जरूर लें. यह जांच बताती है कि आपके बच्चे को यह बीमारी होने का खतरा कितना है.
2. प्री-इम्प्लांटेशन जेनेटिक डायग्नोसिस (PGD) – यह तकनीक उन लोगों के लिए बहुत फायदेमंद है, जिनके जीन में थैलेसीमिया का जोखिम है. IVF प्रक्रिया के जरिए भ्रूण बनने के बाद, इस जांच से स्वस्थ भ्रूण को चुना जा सकता है ताकि बच्चा थैलेसीमिया बचा जा सकें.
3. सेफ बल्ड डोनेशन और ब्लड टेस्ट – अस्पतालों और ब्लड बैंकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर ब्लड यूनिट की एचआईवी, हेपेटाइटिस बी और सी जैसी बीमारियों के लिए पूरी तरह जांच की जाए. इससे संक्रमित खून चढ़ाने जैसी घटनाओं को रोका जा सकता है.
4. थैलेसीमिया की पहचान के लिए मुख्य जांचें – ब्लड टेस्ट, हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस, जेनेटिक टेस्ट और प्रसवपूर्व जांच. यह जांचें बताती है कि शरीर में कौन-कौन से प्रकार के हीमोग्लोबिन मौजूद हैं और उनमें कोई असामान्यता तो नहीं है.
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Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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