ब्रिटेन के नेशनल गेमिंग डिसऑर्डर सेंटर में हाल ही में 72 वर्षीय महिला को भर्ती कराया गया था, जो स्मार्टफोन गेमिंग की लत से जूझ रही थी. पहले जहां इस सेंटर में ज्यादातर किशोर इलाज कराने आते थे, वहीं अब यहां बुजुर्गों की संख्या भी बढ़ने लगी है. अब तक ऐसे 67 बुजुर्गों का इलाज किया जा चुका है. ऐसे में चलिए अब आपको बताते हैं कि स्मार्टफोन की लत से बुजुर्ग कैसे जूझ रहे हैं और एक दशक में 60 प्रतिशत बुजुर्गों तक डिजिटल डिवाइस की पहुंच कैसे बढ़ी है.
बुजुर्ग बन रहे नए स्क्रीन एडिक्ट
ग्लोबल वेब इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार 65 साल से ऊपर के लोग अब अपना 50 प्रतिशत समय टीवी, स्मार्टफोन और डिजिटल डिवाइस पर बिताते हैं. साथ ही वह मनोरंजन के साथ-साथ सोशल मीडिया, ऑनलाइन शॉपिंग, बैंकिंग और गेमिंग में भी एक्टिव है. ऐसे में कुछ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अब यंग जनरेशन की तरह बुजुर्ग भी फोन में खोए रहते हैं. यह बदलाव उनकी मेंटल कंडीशन और रिश्तों पर असर डाल रहा है.
एक दशक में 60 प्रतिशत बढ़ोतरी
अमेरिका में 10 साल पहले जहां 65 साल से ऊपर के सिर्फ 20 प्रतिशत लोग स्मार्टफोन रखते थे. वहीं आज यह संख्या 80 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है. अब बुजुर्गों के पास सिर्फ फोन ही नहीं बल्कि स्मार्ट टीवी, टैबलेट, ईरीडर और कंप्यूटर भी है. इसके अलावा टेक कंपनियां भी इस बदलाव को समझते हुए बुजुर्गों के लिए स्पेशल प्रोडक्ट बना रही है.इसके अलावा रिपोर्ट के अनुसार अब तक 17 प्रतिशत बुजुर्ग स्मार्ट वॉच का उपयोग कर रहे हैं.रिटायरमेंट के बाद जब समय की कोई कमी नहीं रहती तो बुजुर्गों का दिन डिजिटल स्क्रीन के साथ बीतने लगता है. ब्रिटेन में 65 से आयु के लोग औसतन 3 घंटे रोजाना ऑनलाइन समय बिताते हैं. वहीं अगर टीवी और ऑनलाइन दोनों को मिलाकर देखा जाए तो बुजुर्गों का कुल स्क्रीन टाइम युवाओं से भी ज्यादा हो गया है.
बुजुर्गों में स्क्रीन टाइम के साथ बढ़ने लगे खतरे
दक्षिण कोरिया में हुई एक स्टडी के अनुसार 60 से 69 साल के 15 प्रतिशत बुजुर्ग स्मार्टफोन की लत के खतरे में है. वहीं जापान में स्क्रीन टाइम को नींद की कमी से जोड़ा गया है. इसके अलावा चीन की एक रिसर्च में बताया गया है कि ज्यादा समय ऑनलाइन बिताने से बुजुर्गों की फिजिकल एक्टिविटी कम होती है.इसके अलावा बुजुर्गों के डिवाइस अक्सर बैंक खाते से जुड़े होते हैं, जिससे ऑनलाइन ठगी का खतरा भी बढ़ जाता है. एक्सपर्ट्स के अनुसार बुजुर्गों पर कोई निगरानी नहीं रखता है ऐसे में वह खुद तय करते हैं कि फोन में क्या देखना है, कितने समय तक देखना है और यहीं कई बार लत का कारण बनता है.
बुजुर्गों की मॉनिटरिंग नहीं होने से खतरा और ज्यादा
आमतौर पर हम देखते हैं कि बच्चों की स्क्रीन टाइम को लेकर पेरेंट्स और टीचर्स अक्सर उन पर नजर रखते हैं.लेकिन बुजुर्गों के पास कोई ऐसा नहीं होता है जो देख सके कि वह ऑनलाइन क्या कर रहे हैं, इस वजह से उनकी समस्या देर से पहचानी जाती है.इसके अलावा कुछ एक्सपर्ट्स यह भी बताते हैं कि कई बुजुर्ग स्क्रीन टाइम से जुड़ी समस्याओं को पहचान ही नहीं पाते. नींद की कमी एंग्जायटी और लगातार खबरें पढ़ने से तनाव जैसी समस्याएं अक्सर इस लत से जुड़ी होती है.हालांकि यह रिसर्च सिर्फ नुकसान को लेकर ही नहीं है, बल्कि यह रिसर्च बताती है कि टेक्नोलॉजी ने बुजुर्गों की जिंदगी में नए अवसर भी खोले हैं.ऑनलाइन योगा क्लास, बुक क्लब, धार्मिक सेवाएं और परिवार से चैटिंग यह सब उनके लिए सामाजिक जुड़ाव का जरिया बन चुके हैं.
Disclaimer: यह जानकारी रिसर्च स्टडीज और विशेषज्ञों की राय पर आधारित है. इसे मेडिकल सलाह का विकल्प न मानें. किसी भी नई गतिविधि या व्यायाम को अपनाने से पहले अपने डॉक्टर या संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.
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