200 सालों तक मिट्टी में दबी रही बुद्ध की 5500 KG सोने की मूर्ति, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

200 सालों तक मिट्टी में दबी रही बुद्ध की 5500 KG सोने की मूर्ति, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान


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दुनिया भर में बुद्ध को मानने वाले लोगों की संख्या अरबों में है, जो कई देशों में फैले हुए हैं. इसके अलावा, दुनिया के कई देश ऐसे भी हैं, जहां बुद्ध की बड़ी-बड़ी मूर्तियां स्थापित कर उनको ईश्वर के रूप में पूजा जाता है. लेकिन आज हम बात करने वाले हैं गौतम बुद्ध की उस बेहद खास मूर्ति के बारे में, जिसने इतिहास, कला और आध्यात्म को देखने का नजरिया ही बदल दिया है.

गौतम बुद्ध की यह बेहद खास और भव्य मूर्ति किसी आम चीज से नहीं, बल्कि ठोस पीले धातू यानी सोने से बनी है, जो सैकड़ों सालों तक मिट्टी और प्लास्टर की परत के भीतर छिपाई हुई थी. सोने की यह भव्य मूर्ति की कहानी उतनी ही दिलचस्प है जितना कि इसका चमकीला सोना.

किस देश में स्थापित हैं गोल्डन बुद्ध’?

दुनिया की सबसे बड़ी ठोस सोने की बुद्ध की मूर्ति को गोल्डन बुद्ध के नाम से जाना जाता है, जो थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक स्थित वाट ट्रैमिट में स्थापित है. इस मूर्ति की ऊंचाई करीब 3 मीटर है और इसका वजन करीब 12,125 पाउंड (लगभग 5,500 किलोग्राम) है. इस मूर्ति की सबसे खास बात यह है कि यह पूरी तरह से सोने से ही बनी है. यहां तक बुद्ध के बाल और चोटी तक सोने के बने हुए हैं.

इसे बनाने में करीब 83 परसेंट शुद्ध सोना का इस्तेमाल किया गया है. हालांकि, शरीर के कई हिस्सों में सोने की शुद्धता का स्तर अलग-अलग है. जैसे कि बुद्ध के शरीर का हिस्सा करीब 40 परसेंट शुद्ध सोने से बना है, जबकि उनके बाल और चोटी करीब 99 परसेंट शुद्ध सोने के बने हुए हैं.

अगर सोने की वर्तमान कीमत के हिसाब से गोल्डन बुद्ध के मूल्य का आकलन किया जाए तो इसकी कीमत 480 मिलियन डॉलर से भी ज्यादा है. इसके साथ ही गोल्डन बुद्ध की प्रतिमा का डिजाइन इसकी विशिष्ट बौद्ध विज्ञान को भी दर्शाता है, जिसमें बुद्ध भूमिस्पर्श मुद्रा में बैठे हैं. यह मुद्रा ज्ञान, वासना और अज्ञान पर जीत का प्रतीक है.

प्लास्टर और मिट्टी के परत के भीतर क्यों छिपाई गई थी मूर्ति

गोल्डन बुद्ध की इस खास मूर्ति को करीब 200 सालों तक प्लास्टर और मिट्टी की परत के पीछे छिपाकर रखा गया था. इसके पीछे का रहस्य यह है कि इस मूर्ति के ठोस सोने से बने होने की विशेषता को छिपाने और किसी भी संभावित आक्रमण के दौरान चोरी होने से बचाने के लिए इसे प्लास्टर और रंगीन कांच की मोटी परत से ढक दिया गया था.

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