Chhath Puja 2025: दिल्ली में छठ की धूम! नहाय-खाय से शुरुआत, जानें महापर्व का महत्व और विधि

Chhath Puja 2025: दिल्ली में छठ की धूम! नहाय-खाय से शुरुआत, जानें महापर्व का महत्व और विधि


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Chhath Puja 2025 Nahay Khay: पूर्वांचलियों के आस्था के महापर्व छठ पूजा की आज नहाय-खाय के साथ शुरुआत हो गयी और इसी के साथ ही राजधानी दिल्ली का माहौल छठमय हो गया है. फिजाओं में छठ की पवित्रता की खुशबू घुलने लगी है और पूर्वांचल-बिहार के रहने वाले लोगो के घरो में छठ के गीत गूंजने लगे है जो दिल्ली के वातावरण को भक्तिमय बना रहे हैं.

दीवाली के बाद से ही लोग इस महापर्व की तैयारियों में जुट जाते हैं. छठ महापर्व के इस व्रत में शुद्धता और सात्विकता की प्रधानता होती है.

इस पर्व का विधान चार दिनों तक चलता है. भगवान भास्कर की आराधना का लोकपर्व सूर्य षष्ठी (डाला छठ) कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथि में मनाया जाता है. इस तिथि में व्रती महिलाएं शाम के समय नदी, तालाब-सरोवर या कृत्रिम रूप से बनाये गए जलाशय में खड़ी हो कर अस्ताचलगामी भगवान सूर्य की आराधना करती हैं और उन्हें अर्घ्य दिया जाता है.

दीप जलाकर रात्रि पर्यंत जागरण के साथ गीत एवं कथा के जरिये भगवान सूर्य की महिमा का बखान का श्रवण किया जाता है. इसके बाद सप्तमी की तिथि में प्रातः काल मे उगते हुए सूर्य की पूजा कर अर्घ्य दिया जाता है और फिर प्रसाद ग्रहण करने के साथ इस महापर्व का समापन होता है.

नहाय-खाय लौकी-चने की दाल, अरवा चावल प्रसाद स्वरूप में खाने का विधान

इसकी शुरुआत आज नहाय-खाय के साथ हुई. आज के दिन लौकी- अरवा चावल, चने की दाल सहित सात्विक तरीके से बिना लहसुन-प्याज के कई तरह के पकवानों को बनाया जाता है. जिसे भगवान को भोग लगाने के बाद, व्रती खाती हैं और फिर सब लोग उसे प्रसाद के रूप में खाते हैं. खास बात यह है कि व्रती वे खाने के दौरान किसी भी प्रकार की आवाज नहीं होनी चाहिए.

इस दिन का काफी महत्व होता है और नहाय-खाय के दिन गंगा स्नान का विधान है. इसके बाद खरना के दिन व्रती पूरे दिन उपवास रख कर रोटी-खीर बनाती हैं, जिसे केले या फिर अन्य फलों के साथ भगवान को अर्पण करने के बाद प्रसाद के रूप में खाया जाता है, और तब से छठ व्रती का 36 घंटों उपवास शुरू होता है, जो पारण के बाद ही समाप्त होता है.

पारण के साथ पूरा होता है व्रतियों का 36 घंटे का उपवास

खरना पूजा के अगले दिन विभिन्न कृत्रिम और प्राकृतिक घाटो पर डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. जिसकी अद्भुत खूबसूरती देखते ही बनती है. भगवान भास्कर जब धीरे-धीरे अस्त होने को होते हैं, उस वक्त स्वर्णिम प्रभात के लिए उन्हें अर्घ्य अर्पित किया जाता है.

पूरी दुनिया में डूबते सूर्य को श्रद्धा और भक्ति के साथ अर्घ्य देने की यह परंपरा कही और नहीं है. यह जीवन के हर कठिन क्षण में आशा का प्रतीक है. इसके बाद पारण के दिन उदयगामी भगवान भास्कर की पूजा और अर्घ्य के साथ यह महापर्व सम्पन्न होता है.

बताते चलें कि, कल 26 अक्टूबर को खरना पूजा के बाद षष्ठी तिथि यानी 27 अक्टूबर को अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की आराधना-पूजा कर अर्घ्य दिया जाएगा और फिर 28 अक्टूबर सप्तमी तिथि को पारण के दिन उदयगामी सूर्य की पूजा कर उन्हें दूध और गंगा जल का अर्घ्य दिया जाएगा. जिसके बाद इस चार दिवसीय महापर्व का समापन प्रसाद वितरण के साथ होगा.

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