साल 1983 के नेल्ली नरसंहार पर तिवारी आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की योजना की असम सरकार की ओर से घोषणा किये जाने के दो दिन बाद, शनिवार (25 अक्टूबर, 2025) को राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और एक फिल्म निर्माता ने आशंका जताई कि इस कदम से समुदायों के बीच शांति जोखिम में पड़ सकती है.
हालांकि, ‘ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन’ ने राज्य सरकार का समर्थन करते हुए कहा कि इतने लंबे समय तक एक महत्वपूर्ण दस्तावेज को छिपाकर रखना गलत था. मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने गुरुवार (23 अक्टूबर, 2025) को संवाददाताओं को बताया था कि राज्य मंत्रिमंडल ने नवंबर में होने वाले अगले विधानसभा सत्र में तिवारी आयोग की रिपोर्ट पेश करने का फैसला किया है.
पुरानी रिपोर्ट 43 साल बाद सार्वजनिक क्यों?
घुसपैठ के खिलाफ 1979 से 1985 तक असम आंदोलन के दौरान, 1983 के कुख्यात नेल्ली नरसंहार में एक ही रात में 2,100 से अधिक लोगों की हत्या कर दी गई, जिनमें से अधिकांश मुसलमान थे. विपक्ष के नेता देवब्रत सैकिया ने ‘पीटीआई’ को बताया, ‘मुझे समझ नहीं आ रहा कि इतनी पुरानी रिपोर्ट घटना के लगभग 43 साल बाद सार्वजनिक क्यों की जा रही है.’
उन्होंने कहा कि जब जख्म भर ही गए हैं तो अब उन्हें क्यों कुरेदा जा रहा है? क्या विधानसभा चुनाव से पहले लोगों को भड़काने के लिए ऐसा किया जा रहा है? जब लोग नेल्ली क्षेत्र में सद्भावना से रह रहे हैं तो रिपोर्ट को पेश करने से समुदायों के बीच व्याप्त शांति और विश्वास को नुकसान पहुंच सकता है.
आदिवासी पड़ोसियों का गांव पर हमला
सैकिया ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि गायक जुबिन गर्ग की मौत के बाद सभी जातियों और धर्मों के लोगों के एकजुट होने से मुख्यमंत्री निराश हैं. सभी समुदायों के लोग उनके लिए न्याय की मांग कर रहे हैं और गर्ग की विचारधारा के प्रति निष्ठा दिखा रहे हैं, जो सांप्रदायिकता के खिलाफ थी.’
नेल्ली मोरीगांव में लगभग 16 गांवों का एक समूह है. 18 फरवरी 1983 को असमिया हिंदुओं और स्थानीय आदिवासी पड़ोसियों ने इन गांवों पर हमला किया और लगभग छह घंटे की अवधि में 2,100 से ज़्यादा लोगों की हत्या कर दी. जिन निवासियों पर हमला किया गया, वे मुख्य रूप से बांग्ला भाषी मुस्लिम समुदाय के थे, जिनके पूर्वज 1930 के दशक में ही पूर्वी बंगाल से आकर बस गए थे.
गर्ग की मौत पर शोक के समय रिपोर्ट पेश
असम सरकार ने 14 जुलाई 1983 को टी.पी. तिवारी के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया था. आयोग की 551 पृष्ठों की यह रिपोर्ट मई 1984 में तत्कालीन हितेश्वर सैकिया सरकार को सौंपी गई थी, लेकिन इसे कभी पेश या सार्वजनिक नहीं किया गया.
नरसंहार पर एक फीचर फिल्म ‘द नेल्ली स्टोरी’ बनाने वाले पार्थजीत बरुआ ने कहा कि ऐसे समय में रिपोर्ट को सामने लाना, जब पूरा राज्य गर्ग की मौत पर शोक मना रहा है, ‘आश्चर्यजनक और निराशाजनक है. अभी समय अनुकूल नहीं है, लोग भावनात्मक रूप से टूट चुके हैं. हम उम्मीद करते हैं कि सरकार सबसे पहले गर्ग की मौत के पीछे की सच्चाई का पता लगाएगी.’ बरुआ ने यह भी कहा कि तिवारी रिपोर्ट को सदन में पेश करने और उस पर चर्चा कराने से गर्ग के मामले से पूरा ध्यान भटकने की संभावना है.
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