ओडिशा हाई कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के तहत पहली पत्नी (वैध विवाह) और दूसरी पत्नी (अमान्य विवाह) दोनों से पैदा हुए बच्चे अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं. हालांकि, प्रत्येक बच्चे का हिस्सा उस हिस्से तक सीमित होगा, जो धारा 6(3) के अनुसार उनके पिता की मौत से पहले काल्पनिक विभाजन में संबंधित मां को आवंटित किया गया होगा.
यह फैसला उस मामले से आया, जहां प्रतिवादी अनुसया मोहंती (पहली पत्नी) ने फैमिली कोर्ट भुवनेश्वर के समक्ष अपील दायर कर मांग की, कि वो दिवंगत कैलाश चंद्र मोहंती की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी और उनकी सही कानूनी उत्तराधिकारी है. अनुसया ने दावा किया कि मृतक से उसका विवाह 5 जून, 1966 को हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुआ था. वे पति-पत्नी की तरह साथ रहते थे और इस विवाह से उनके दो बेटे हुए. उसने आगे आरोप लगाया कि अपीलकर्ता संध्या रानी साहू (दूसरी पत्नी) केवल एक नर्स थी, जो उसके दिवंगत पति के साथ काम करती थीं और उसके साथ कोई वैध वैवाहिक संबंध नहीं था.
फैमिली कोर्ट ने क्या कहा?
पारिवारिक न्यायालय ने 29 अक्टूबर, 2021 को मुकदमे का फैसला सुनाया, जिसमें अनुसया (पहली पत्नी) को कैलाश चंद्र मोहंती की कानूनी रूप से विवाहित पत्नी और कानूनी उत्तराधिकारी घोषित किया गया, जिससे उन्हें उनकी पैतृक और स्व-अर्जित संपत्ति का उत्तराधिकारी बनने का अधिकार मिला.
दूसरी पत्नी ने ओडिशा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की
इस मामले को लेकर दूसरी पत्नी संध्या ने ओडिशा हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और इस आधार पर फैसले को चुनौती दी कि उसे अपना पक्ष रखने का उचित अवसर नहीं दिया गया. उसने तर्क दिया कि कार्यवाही के दौरान उसके वकील का निधन हो गया था और कोविड-19 महामारी के कारण उसे घटनाक्रम की जानकारी नहीं थी, जिसके कारण मामले का फैसला उसकी अनुपस्थिति में किया गया.
ओडिशा हाई कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?
ओडिशा हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 (एचएमए) की धारा 16 अमान्य और अमान्यकरणीय विवाहों से उत्पन्न संतानों को वैधता प्रदान करती है और यह सुनिश्चित करती है कि वे अपने माता-पिता की संपत्ति के उत्तराधिकारी हैं. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के तहत वैध संतानें, जिनमें एचएमए की धारा 16 के तहत वैध संतानें भी शामिल हैं, प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों की श्रेणी में आती हैं. इस कारण उन्हें अपने माता-पिता की स्व-अर्जित संपत्ति का निर्विवाद उत्तराधिकार प्राप्त होता है.
ओडिशा हाई कोर्ट ने आगे कहा कि उन्हें अपीलकर्ता (दूसरी पत्नी संध्या) की चिंता में योग्यता नजर आती है और वे एक विशिष्ट स्पष्टीकरण शामिल करके पारिवारिक न्यायालय के आदेश को संशोधित करना आवश्यक समझते हैं. हाईकोर्ट ने कहा कि यह न्यायालय मानता है कि अपीलकर्ता (दूसरी पत्नी संध्या) और दिवंगत कैलाश चंद्र मोहंती से उत्पन्न संतानें स्पष्ट रूप से उनकी स्व-अर्जित संपत्ति की उत्तराधिकारी हैं. इसके अतिरिक्त, जहां मृतक माता-पिता मिताक्षरा सहदायिक थे ऐसे बच्चों को भी पैतृक संपत्ति में अपना हिस्सा मिलेगा.
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