लोकआस्था के महापर्व छठ पूजा की शुरूआत हो चुकी है. शनिवार को नहाय-खाय के साथ व्रती पूरी निष्ठा से इस व्रत की तैयारी में लगे हैं. चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व का समापन 28 अक्तूबर को होगा, जब श्रद्धालु उदयमान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे.

छठ पर्व के दूसरे दिन खरना की परंपरा होती है. इस दिन व्रती गुड़ की खीर और रोटी का प्रसाद तैयार करते हैं. गेहूं के आटे से तैयार की गई रोटी, पूरी या ठेकुआ भी प्रसाद के रूप में बनाया जाता है. यह प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर बनाया जाता है. व्रती प्रसाद के रूप में ग्रहण करने के बाद 36 घंटे निर्जला अनुष्ठान शुरू कर दिए हैं.

मान्यता है कि छठी मैया को आम की लकड़ी अत्यंत प्रिय होती है. आम की लकड़ी को शुद्ध, सात्विक और सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाली माना गया है. इसी कारण छठ पूजा में प्रसाद इसी लकड़ी से पकाने की परंपरा प्राचीन समय से चली आ रही है.

इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और केवल एक बार बिना नमक का सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं. यह भोजन विशेष महत्व रखता है, क्योंकि इसके बाद से व्रतियों का 36 घंटे का कठोर निर्जला उपवास आरंभ हो जाता है.

खरना शब्द का अर्थ ही शुद्धता से है. इस दिन व्रती स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करते हैं और पूरे वातावरण की पवित्रता का विशेष ध्यान रखते हैं. धार्मिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन से छठी मैया का घर में आगमन होता है.

खरना के दिन व्रती सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करते हैं. इसके बाद छठी मैया और सूर्य देव का स्मरण कर पूरे दिन निर्जला व्रत का संकल्प लेते हैं. शाम को सूर्यास्त के बाद व्रती स्वयं प्रसाद तैयार करते हैं और पूजा संपन्न करते हैं.

खरना की पूजा के बाद व्रती अगले 36 घंटे का निर्जला व्रत आरंभ करते हैं, जो छठ पूजा के अंतिम अर्घ्य तक निरंतर चलता है. खरना केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मसंयम, श्रद्धा और आंतरिक शुद्धता का प्रतीक माना जाता है.
Published at : 26 Oct 2025 02:36 PM (IST)






