Chhath Puja 2025: आज छठ महापर्व पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है. खासकर यह पर्व बिहार, झारखंड और पूर्वी उतर प्रदेश में मनाया जाता है. हालांकि अब यह पर्व पूरे देश और विदेशों में भी श्रद्धा के साथ मनाया जाने लगा है. यह पर्व प्रकृति से जुड़ा है. आइए जानते हैं क्या है इसका प्राकृतिक महत्व-
सूर्य उपासना और प्रकृति से जुड़ाव
छठ पूजा में सूर्य देव की उपासना की जाती है. व्रती इस दिन जल में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करते हैं. यह पूजा केवल धार्मिक नहीं, बल्कि प्रकृति के प्रति आभार का भी प्रतीक है.
सूर्य देव जीवन, प्रकाश और ऊर्जा के स्रोत हैं, और उनकी उपासना से मनुष्य अपने जीवन में नई ऊर्जा और उत्साह का संचार महसूस करता है. छठ पूजा में अस्ताचलगामी और उदयीमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है. यह इस बात का संकेत है कि सूर्य के बिना जीवन संभव नहीं है और सूर्य ही समस्त प्रकृति के वाहक भी हैं.
पर्यावरणीय दृष्टि से छठ का महत्व
छठ पर्व हमें जल और सूर्य के महत्त्व की याद दिलाता है. व्रती नदी, तालाब या किसी प्राकृतिक जलस्रोत में खड़े होकर पूजा करते हैं, जो जल संरक्षण और स्वच्छता के महत्व को दर्शाता है.
सूर्य की किरणें और स्वच्छ जल मिलकर पर्यावरणीय संतुलन का संदेश देती हैं. यह पर्व हमें सिखाता है कि जब तक हम प्रकृति का सम्मान नहीं करेंगे, तब तक जीवन में संतुलन संभव नहीं है.
पूजा में सभी मौसमी फलों का उपयोग
छठ पूजा में प्रकृति में होने वाले सभी फलों की पूजा की जाती है. खासकर गन्ना, नींबू, सुथनी, मूली, हल्दी, मौसमी, नारियल, शकरकंद समेत कई फल चढ़ाए जाते हैं.
यह इस बात का प्रतीक है कि छठ पूजा में हम सभी प्रकृति में उगने वाले समस्त फलों की आराधना करते हैं. सूर्य देवता के बिना यह फल भी संभव नहीं हैं. प्रसाद में भी व्रती गन्ना का गुड़, चावल और दूध का प्रयोग करते हैं. यह भी प्रकृति का ही हिस्सा है.
प्रकृति का सम्मान
छठ पूजा में अनाज, जल, उषा और सूर्य की पूजा की जाती है. ये सभी प्रकृति के मूल तत्व हैं. इस प्रकार यह पर्व केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति-सम्मान का संदेश देने वाला महोत्सव है.
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