अमेरिका के उपराष्ट्रपति JD Vance अपने एक बयान को लेकर विवादों में घिर गए हैं. दरअसल, उन्होंने अपनी पत्नी उषा वेंस, जो एक हिंदू परिवार से आती हैं, उनके बारे में कहा कि वह उम्मीद करते हैं कि एक दिन उनकी पत्नी ईसाई धर्म को अपना लेंगी. उनके इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर भारी विरोध शुरू हो गया है.
मेहदी हसन ने उठाई आपत्ति
ब्रिटिश पत्रकार मेहदी हसन ने भी इस विवाद पर प्रतिक्रिया दी और X पर लिखा “वे कंजरवेटिव हिंदू और यहूदी जो डोनाल्ड ट्रंप और GOP के साथ गए थे, अब समझ रहे हैं कि क्रिश्चियन नेशनलिस्ट उनके दोस्त नहीं हैं.” हसन ने यह टिप्पणी Hindu American Foundation (HAF) के एक पोस्ट के जवाब में की, जिसने उनसे आग्रह किया था कि वे हिंदू धर्म को समझने की कोशिश करें.
Hindu American Foundation का जवाब
HAF ने X पर लिखा, “JD Vance, अगर आपकी पत्नी ने आपको अपने धर्म से दोबारा जुड़ने के लिए प्रेरित किया, तो आप भी क्यों न उनके धर्म — हिंदू धर्म — को समझने की कोशिश करें?” संस्था ने आगे लिखा, “हिंदू धर्म में किसी को धर्म बदलने के लिए मजबूर नहीं किया जाता. यह एक समावेशी और बहुलवादी धर्म है, जिसमें हर व्यक्ति को ईश्वर की अवधारणा को अपने तरीके से समझने की स्वतंत्रता है.”
With respect @JDVance, if your wife encouraged you to re-engage with your faith, why not reciprocate that and engage with Hinduism too?
If you did you may well learn that Hinduism doesn’t share the need to wish your spouse comes around to see things as you do in terms of… https://t.co/fkQQgclNDl
— Hindu American Foundation (@HinduAmerican) October 31, 2025
JD Vance ने दी सफाई
विवाद बढ़ने पर JD Vance ने सफाई दी कि उनकी पत्नी ने ही उन्हें ईसाई धर्म से दोबारा जुड़ने के लिए प्रेरित किया था. उन्होंने कहा, “मेरी पत्नी सबसे बड़ा आशीर्वाद हैं. वह खुद ईसाई नहीं हैं और उनके धर्म परिवर्तन की कोई योजना नहीं है, लेकिन किसी भी इंटरफेथ रिश्ते की तरह मैं चाहता हूं कि एक दिन वह चीजों को मेरी तरह देखें.” Vance ने यह भी कहा कि चाहे उनकी पत्नी का धर्म कुछ भी हो, वह हमेशा उनसे प्यार और सम्मान करते रहेंगे.
क्यों बढ़ा विवाद
JD Vance का यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका में धार्मिक असहिष्णुता और इंटरफेथ रिश्तों को लेकर राजनीतिक माहौल पहले से ही संवेदनशील है. कई सोशल मीडिया यूज़र्स ने इसे “धर्म परिवर्तन की भावना” से जोड़ते हुए आलोचना की है, जबकि कुछ ने इसे “व्यक्तिगत इच्छा” करार दिया है.
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