देश के 12 राज्यों में मंगलवार (4 नवंबर, 2025) से शुरू किए गए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ विपक्षी दलों का I.N.D.I.A गठबंधन सुप्रीम कोर्ट जा सकता है. गठबंधन के तेवर SIR को लेकर सख्त हैं. सूत्रों के अनुसार शुरुआती आपसी चर्चा में तय हुआ है कि गंठबंधन के सभी दल सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएं. साथ ही राज्य में अपने स्तर पर विरोध जताएं.
यह इंडिया ब्लॉक की तरफ से तय किया गया पहला पड़ाव है. सूत्रों के अनुसार बिहार चुनाव के चलते फिलहाल औपचारिक बैठक संभव नहीं, लेकिन चुनाव के बाद संसद से सड़क तक इंडिया ब्लॉक एकजुट होकर विरोध करता दिखेगा. बिहार चुनाव के बाद इस मुद्दे पर ब्लॉक की औपचारिक बैठक होगी.
सूत्रों के अनुसार पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, राष्ट्रीय जनता दल के नेता तेजस्वी यादव, नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार, शिवसेना (यूबीटी) के मुखिया उद्धव ठाकरे, समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन समेत तमाम दलों ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के साथ मिलकर इस मुद्दे पर संगठित होकर संघर्ष करने की सहमति दी है.
तमिलनाडु में सत्तारूढ़ पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्य में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के निर्वाचन आयोग के फैसले को चुनौती दी है. पार्टी ने याचिका में इस कवायद को असंवैधानिक, मनमाना और लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए खतरा बताया है.
द्रमुक के संगठन सचिव आर एस भारती की ओर से दायर याचिका में राज्य में एसआईआर की प्रक्रिया शुरू करने के लिए 27 अक्टूबर की निर्वाचन आयोग की अधिसूचना को रद्द करने का अनुरोध किया गया है. याचिका में इसे अनुच्छेद 14, 19 और 21 (समानता का अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार) और संविधान के अन्य प्रावधानों तथा जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और 1960 के मतदाता पंजीकरण नियमों का उल्लंघन बताया गया है. याचिका पर इस हफ्ते सुनवाई की संभावना है.
याचिका में कहा गया कि एसआईआर के तहत लाखों पात्र मतदाताओं को ‘मनमाने ढंग से हटाया‘ जा सकता है, क्योंकि यह प्रक्रिया अनुचित दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं को लागू करती है और इसमें प्रक्रियात्मक सुरक्षा उपायों का अभाव है.
याचिका में कहा गया कि जल्दबाजी में समयसीमा तय करने और अस्पष्ट प्रक्रियाओं के कारण गलत तरीके से नाम हटाए जाने से स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव बाधित हो सकते हैं, जो भारत के संवैधानिक बुनियादी ढांचे का एक मुख्य तत्व है.






