अमेरिकी रक्षा विभाग (पेंटागन) की नई ग्रूमिंग नीति ने धार्मिक समुदायों में गहरी चिंता पैदा कर दी है. रक्षा सचिव पीट हेगसेथ द्वारा जारी मेमो के अनुसार, सेना में दाढ़ी रखने की धार्मिक छूट को लगभग समाप्त कर दिया गया है. इसका मतलब है कि जो सैनिक धार्मिक आधार पर दाढ़ी रखते थे, जैसे सिख, मुस्लिम और यहूदी उनकी सैन्य सेवा अब खतरे में पड़ सकती है.
नई नीति के तहत, सेना को 2010 से पहले के कठोर मानकों पर लौटने का आदेश दिया गया है. यानी दाढ़ी की छूट “सामान्यतः अनुमत नहीं” मानी जाएगी. यह फैसला 1981 के सुप्रीम कोर्ट केस गोल्डमैन बनाम वेनबर्गर की सख्त सैन्य अनुशासन नीति की याद दिलाता है. 30 सितंबर को मरीन कॉर्प्स बेस क्वांटिको में 800 से अधिक वरिष्ठ अधिकारियों को संबोधित करते हुए हेगसेथ ने कहा, “हमारे पास नॉर्डिक पगानों की सेना नहीं है.” इस भाषण के कुछ घंटों बाद ही सभी शाखाओं को निर्देश जारी कर दिए गए कि अगले 60 दिनों में धार्मिक छूट सहित लगभग सभी दाढ़ी छूट समाप्त कर दी जाए. यह नीति केवल स्पेशल फोर्सेस के लिए अस्थायी छूट छोड़ती है, जो स्थानीय आबादी में घुलने-मिलने के उद्देश्य से दी जाती है.
सिख समुदाय की तीखी प्रतिक्रिया
इस फैसले ने सबसे पहले सिख समुदाय को झकझोर दिया. सिख कोअलिशन, जो अमेरिकी सेना में सिख सैनिकों के अधिकारों की प्रमुख वकालत करता है उन्होंने इसे वर्षों की समावेशिता की लड़ाई के साथ विश्वासघात बताया. सिख धर्म में केश (अकटे बाल) पहचान का अभिन्न हिस्सा हैं. एक सिख सैनिक ने सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म एक्स पर लिखा कि मेरे केश मेरी पहचान हैं. यह समावेशिता की लड़ाई के बाद विश्वासघात जैसा लगता है.”सिखों का अमेरिकी सेना से जुड़ाव कोई नया नहीं है.
1917 में भगत सिंह थिंड पहले सिख थे जिन्हें पगड़ी पहनकर सेवा की अनुमति मिली. 2011 में रब्बी मेनाचेम स्टर्न और 2016 में कैप्टन सिमरतपाल सिंह ने अदालतों में अपने धार्मिक अधिकारों की जीत दर्ज की. 2022 के सिंह बनाम बर्गर मामले में अदालत ने फिर सिख सैनिकों के दाढ़ी और पगड़ी के अधिकारों की पुष्टि की. सिख कोअलिशन का कहना है कि दाढ़ी रखना सैन्य सेवा में कोई बाधा नहीं है क्योंकि सिख सैनिक गैस मास्क टेस्ट पास कर चुके हैं.
मुस्लिम और यहूदी समुदायों में भी असंतोष
नई नीति ने सिर्फ सिखों को नहीं, बल्कि मुस्लिम और ऑर्थोडॉक्स यहूदी सैनिकों को भी परेशान कर दिया है.मुस्लिम सैनिकों के लिए दाढ़ी रखना धार्मिक दायित्व है, जबकि यहूदियों के लिए यह उनकी पवित्र परंपरा का हिस्सा है.काउंसिल ऑन अमेरिकन-इस्लामिक रिलेशंस (CAIR) ने रक्षा सचिव को पत्र लिखकर सवाल किया कि क्या मुस्लिम, सिख और यहूदी सैनिकों की धार्मिक स्वतंत्रता अब भी सुरक्षित रहेगी?” CAIR ने अमेरिकी संविधान के पहले संशोधन (First Amendment) का हवाला दिया और कहा कि लंबे समय से पेंटागन धार्मिक स्वतंत्रता को मान्यता देता आया है.
काले सैनिकों और अन्य समूहों पर भी असर
यह नीति केवल धार्मिक आधार पर नहीं, बल्कि नस्लीय दृष्टि से भी विवाद में है. काले सैनिकों को अक्सर “प्सूडो फॉलिकुलाइटिस बार्बे” नामक त्वचा रोग के कारण दाढ़ी रखने की चिकित्सकीय छूट दी जाती थी. अब नई नीति के तहत यह छूट भी स्थायी नहीं रहेगी. इंटरसेप्ट की रिपोर्ट के अनुसार, यह नियम धर्म और नस्ल के आधार पर बहिष्कार की संस्कृति को बढ़ावा दे सकता हैनॉर्स पगान सैनिकों ने भी इस नीति को अपनी धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ बताया है.
क्या यह नीति समावेशिता के खिलाफ कदम है?
कई मानवाधिकार संगठन और धार्मिक समूहों का मानना है कि यह फैसला अमेरिकी सेना की विविधता और समावेशिता की भावना के खिलाफ है. 2017 में जारी Army Directive 2017-03 ने सिखों, मुसलमानों और यहूदियों के लिए स्थायी छूट की व्यवस्था की थी. अब इस नीति के पलटने से न केवल धार्मिक स्वतंत्रता, बल्कि सेना में भरोसे और समानता की भावना पर भी असर पड़ सकता है.