वाइब हैकिंग असल में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और सोशल इंजीनियरिंग का ऐसा संगम है जिसके ज़रिए यूजर की हर ऑनलाइन गतिविधि पर नज़र रखी जाती है. चाहे आप किस तरह के वीडियो देखते हैं किन पोस्ट्स को लाइक करते हैं या किन विषयों पर कमेंट करते हैं हर क्लिक, हर स्क्रॉल एक डेटा पॉइंट बन जाता है.

इन सभी पैटर्न्स को AI एल्गोरिदम समझकर यह तय करता है कि व्यक्ति इस समय किस मानसिक अवस्था में है खुश, गुस्से में, उदास या उत्साहित. फिर उसी भावनात्मक स्थिति के अनुसार यूजर को कंटेंट दिखाया जाता है ताकि उसकी राय, सोच और निर्णयों को प्रभावित किया जा सके.

यह तकनीक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, वीडियो साइट्स और न्यूज़ रिकमेंडेशन सिस्टम्स के माध्यम से काम करती है. जिन एल्गोरिदम्स को पहले सिर्फ आपकी रुचियों के अनुसार कंटेंट दिखाने के लिए बनाया गया था अब वही आपकी भावनाओं का विश्लेषण कर यह तय करने लगे हैं कि आप क्या सोचें और किस पर विश्वास करें.

कई बार यह तकनीक मार्केटिंग, राजनीतिक प्रचार या किसी विचारधारा को बढ़ावा देने के लिए इस्तेमाल की जाती है. धीरे-धीरे व्यक्ति यह समझ ही नहीं पाता कि उसकी राय खुद की नहीं बल्कि किसी AI सिस्टम द्वारा बनाई गई है. विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में यह ट्रेंड पारंपरिक फिशिंग या डेटा चोरी से कहीं अधिक खतरनाक साबित हो सकता है. जहां पुराने साइबर हमले आपके अकाउंट या फाइल्स तक सीमित थे वहीं वाइब हैकिंग सीधे आपके मन और भावनाओं को टारगेट करती है.

आने वाले समय में जब AI मॉडल इंसानों की भावनाओं को और गहराई से पढ़ने लगेंगे तब यह समझना मुश्किल हो जाएगा कि हम जो महसूस कर रहे हैं वह असली है या किसी एल्गोरिदम का असर.

इससे बचाव के लिए सबसे ज़रूरी है डिजिटल सतर्कता. सोशल मीडिया या ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर किसी भी कंटेंट को आंख मूंदकर न मानें. हर जानकारी को दोबारा जांचें और समझें कि क्या आप वाकई किसी विषय में रुचि रखते हैं या वह रुचि किसी सिस्टम ने आपके अंदर पैदा की है. साथ ही, अपने डिजिटल व्यवहार को पहचानें कौन-से कंटेंट पर आप ज़्यादा समय देते हैं किन विषयों पर जल्दी प्रतिक्रिया देते हैं यही आपके मानसिक ‘वाइब’ का आधार बनता है.

दिलचस्प बात यह है कि वाइब हैकिंग का उपयोग हमेशा नकारात्मक नहीं होता. यदि सही तरीके से अपनाया जाए तो ब्रांड्स इसका उपयोग अपने टारगेट ऑडियंस तक पहुंचने के लिए कर सकते हैं और कंटेंट क्रिएटर्स अपने दर्शकों से गहरा भावनात्मक जुड़ाव बना सकते हैं. लेकिन जब यही तकनीक किसी गलत इरादे से इस्तेमाल होती है तो यह न सिर्फ आपकी राय बल्कि आपकी मानसिक स्वतंत्रता पर भी कब्जा कर सकती है. डिजिटल युग में सबसे बड़ी सुरक्षा दीवार कोई सॉफ्टवेयर नहीं बल्कि आपकी सजगता और समझदारी है.
Published at : 04 Nov 2025 10:49 AM (IST)
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